Rajeev kumar

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लेखनी कहानी -19-Sep-2022

खर्चा


वो फिसल कर सड़क पे गिरा था, थोड़ी ज्यादा चोट आई थी कुल्हे पे, यकायक उसको याद हो आया कि गाँव की पगडन्डीयांे पर तो बहूत बार गिरा था मगर ऐसी चोट नहीं आई थी। गाँव की पगडंडियों को याद करके उसको गाँव की भी याद सताने लगी थी। उसने खुद को इन यादों की सोच से बाहर निकाला और खुद को सम्भाला कि अभी तो गाँव से आए दो-तीन दिन ही हुए हैं, मैं इतना कमजोर कैसे हो सकता हू, उसने प्रण किया कि जब तक रूपए जमा नहीं कर लूंगा तबतक गाँव जाना तो दुर की बात, गाँव जाने के विषय में सोचूंगा भी नहीं।
कारखाने में भारी मशीनों के शोरगुल मे अभयस्त हो चूका मोहन, जब रात को विस्तर पे जाता तो तब कुछ समय के लिए ही सही, उसको गाँव की याद थोड़ा बेचैन भी करती है मगर अल्प समय की बेचैनी के असर को नींद का भरपूर असर खत्म कर देती है।
गाँव से आए फोन पे सारी परेशानी सुनने के बाद, मोहन ने अपनी माँ से कहा ’’ लाला जी को बोलो, कुछ दिन और रूक जाए, सारा कर्ज़ा एक ही बार मंे चुका दुंगा। ’’
तनख्वाह मिलने से पहले ही मोहन को अपने कमरे में साज-सजावट वाले सामानों की चिन्ता सताने लगी, नतीजतन मोहन गाँव तो आया, मगर रूपयों की जगह ढेर सारी दिलासाएं लेकर आया और उसी दिलासा ने लाला जी का पेट आधा भर दिया और आखा खाली रखा।
दिलासा का अन्न खत्म हो जाने के बाद लाला जी पूरी तरह से भुखे हैं और लगातार तगादा मार रहे है।

समाप्त

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8 Comments

Pallavi

22-Sep-2022 09:27 PM

Beautiful ❤️

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Abeer

22-Sep-2022 10:48 AM

Nice post

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Barsha🖤👑

21-Sep-2022 05:18 PM

Beautiful

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